Sunday, April 3, 2011

आज अचानक एक मोड़ पे ज़िन्दगी से मुलाकात हुई 
वो जल्दी में थी, मैं खाली था बस पल दो पल ही बात हुई

उसने पूछा तुम कैसे हो, मैंने बोला बिलकुल तनहा
मैंने पूछा तुम कैसी हो, बोली खुश हु न है कोई शिकवा
मैं बोल पड़ा तुम झूठी हो क्यूंकि चेहरे पे शिकन सी है
उसने धीरे से मुझे कहा, क्यों करते हो मुझको रुसवा

मैंने बस फिर कुछ नहीं कहा वो पहले ही परेशां सी है
मैं ही नहीं जो रोया हूँ, आँखें उसकी भी लाल सी है
पर वो तो फिर भी है ज़िन्दगी, उसका हर रंग निराला है
वो चली गयी मैं खड़ा रहा, शायद कोई आने वाला है

गर तुमको कभी फिर मिले कहीं, कहना उसको मुझे इंतजार है
उसको मेरी हँसी से हो ना हो, मुझको उसकी हँसी से प्यार है
मैं तब से अब तक खड़ा ही हु, कब दिन आया कब रात हुई
वो जल्दी मैं थी, मैं खली था बस पल दो पल ही बात हुई 

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