कोशिश करता हूँ पर भूल नहीं पता वो आखिरी मुलाक़ात तुझसे
आँखें तेरी नाम थी और न की कोई बात मुझसे
मैं सोचता रहा कुछ तो है शायद तुम बताओगे
मैं जानता भी नहीं था की अब कभी नज़र न आओगे
तुमने शायद ये यु किया की मन में कोई फासला न हो
मुझे तो दर है बस इतना की ये कहीं आखिरी फैसला न हो
अपने बीच सदा पतझड़ और फिर बहार आती थी
कभी हम लड़ भी पड़ते थे मगर तू लौट आती थी
अगर जाना था चले जाते कम से कम मुझसे कहा होता
एक मौका तो दिया होता में तुझसे लिपट के रोता
मैं इंतजार बस करता रहा और बस तेरा पैगाम आया
ये फैसला तेरा था भी या नहीं, में फकत इतना भी नहीं देख पाया
अगर कह के चली जाती तो तब भी होने को यही होता
पर अगर प्यार था हमको कम से कम सामने कहा होता
मैं देखता तेरी आँखों में शायद थोडा तो मैं नज़र आता
जो तुने खुद मुझे कहा होता मैं दुनिया से भी बस चला जाता
शायद तुझे यकीं न था की मुझको तुझसे प्यार है
शायद लगा की कुछ भी अब कहना सुनना बेकार है
शायद लगा की आई बरसात और प्यार की लिखाई बह गयी
पर तेरा काँटा निकल गया मेरे मन में फाँस रह गयी
तुझको भी है पता की किया तुने कुछ सही नहीं
तब ही बस पैगाम दिया कही ये बात मुझे नहीं
अगर तुझे जाना ही था तो क्या मैं तुझको रोक पता
कहा तो होता मुझसे एक बार मैं खुद तुझे ही छोड़ जाता
अब तक समझ नहीं सका पीछे इसके क्या बात थी
तू बिन कहे चली गयी क्या बस इतनी मेरी औकात थी
तू चली गयी कोई बात नहीं बस ऐसे गयी यही बात थी
मैं जान के भी ना जान सका की अपनी वो आखिरी मुलाक़ात थी
.......
आँखें तेरी नाम थी और न की कोई बात मुझसे
मैं सोचता रहा कुछ तो है शायद तुम बताओगे
मैं जानता भी नहीं था की अब कभी नज़र न आओगे
तुमने शायद ये यु किया की मन में कोई फासला न हो
मुझे तो दर है बस इतना की ये कहीं आखिरी फैसला न हो
अपने बीच सदा पतझड़ और फिर बहार आती थी
कभी हम लड़ भी पड़ते थे मगर तू लौट आती थी
अगर जाना था चले जाते कम से कम मुझसे कहा होता
एक मौका तो दिया होता में तुझसे लिपट के रोता
मैं इंतजार बस करता रहा और बस तेरा पैगाम आया
ये फैसला तेरा था भी या नहीं, में फकत इतना भी नहीं देख पाया
अगर कह के चली जाती तो तब भी होने को यही होता
पर अगर प्यार था हमको कम से कम सामने कहा होता
मैं देखता तेरी आँखों में शायद थोडा तो मैं नज़र आता
जो तुने खुद मुझे कहा होता मैं दुनिया से भी बस चला जाता
शायद तुझे यकीं न था की मुझको तुझसे प्यार है
शायद लगा की कुछ भी अब कहना सुनना बेकार है
शायद लगा की आई बरसात और प्यार की लिखाई बह गयी
पर तेरा काँटा निकल गया मेरे मन में फाँस रह गयी
तुझको भी है पता की किया तुने कुछ सही नहीं
तब ही बस पैगाम दिया कही ये बात मुझे नहीं
अगर तुझे जाना ही था तो क्या मैं तुझको रोक पता
कहा तो होता मुझसे एक बार मैं खुद तुझे ही छोड़ जाता
अब तक समझ नहीं सका पीछे इसके क्या बात थी
तू बिन कहे चली गयी क्या बस इतनी मेरी औकात थी
तू चली गयी कोई बात नहीं बस ऐसे गयी यही बात थी
मैं जान के भी ना जान सका की अपनी वो आखिरी मुलाक़ात थी
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