Saturday, January 21, 2012

शायद वो मेरा प्यार न था, मेरा ये वहम था

शायद वो मेरा प्यार न था, मेरा ये वहम था
शायद है तू खुदा और मुझ पर तेरा ये करम था

अब ये तो कुछ अजीब है की न सोया मैं रात भर
देखा न तुझसे बात की पर रोया मैं रात भर
दिन भर मैं तुझको भूला और तुजमे खोया मैं रात भर
माला जो टूटी आस की, उसको पिरोया मैं रात भर
पर टीस मेरे दिल की शायद मेरा ही ज़ख्म था
शायद वो मेरा प्यार न था, मेरा ये वहम था

कल तक मेरी आवाज़ तेरे दिन की अज़ान थी
रहती थी मेरे दिल अपने घर में मेहमान थी
मेरा वजूद तुझसे था, तू मेरी पहचान थी
कैसे था ये हुआ, खुद खुदाई हैरान थी
ये हो गया, होता गया, बस ये ही अहम् था
शायद वो मेरा प्यार न था, मेरा ये वहम था

जाने दिया तुझे लगा की लौट आएगी
अब तक जो रही मेरी अब क्यों तू जाएगी 
कहने दो कुछ उन्हें, न उनकी बातों में आएगी
दिल को थी दिल से आस की न मुझको भूलाएगी
गयी तू और दिल टूट गया, जैसे तू मरहम था
शायद वो मेरा प्यार न था, मेरा ये वहम था

गर प्यार होता ये क्यों न मुझको है करार
गर प्यार ही था ये तो क्यों न आई तू एक बार
गर प्यार ही था ये तो न कोई ख़त न एक ख्याल
ये प्यार नहीं था ये थी खुशफहमी बेमिसाल
तेरा नसीब खूब था, बस मेरा ही नरम था 
शायद वो मेरा प्यार न था, मेरा ये वहम था  
शायद वो मेरा प्यार न था, मेरा ये वहम था ........

No comments:

Post a Comment