जीवन की इस पाठशाला में
भगवान की इस रंगशाला में
अक्सर अजनबी मिलते रहते है
कुछ ताने-बाने बुनते रहते है
कुछ धागे सदा ही रहते संग
कुछ खुद-ब-खुद टूट जाते है
कुछ बनते सहारा जीवन भर
कुछ ज़ख्म-ए-नासूर दे जाते है
जीवन फिर भी पाठशाला है
कभी मदिरा है कभी हाला है
सब जीते भी और दुखी भी है
इसका कुछ ढंग निराला है
अक्सर जीवन की रंगशाला में
कुछ ऐसे कलाकार मिल जाते है
जो किसी को लगे अब कैसे भी
अपने मन में बस जाते है
पर आखिर ये रंगशाला है
एक रोज़ तो नाटक का अंत होगा
उस दिन वो जो मन को भाया था
आगे ना अब वो संग होगा
आखिर उसका भी जीवन है
उसकी भी ये रंगशाला है
तु सोचे रहे वो यही सदा
उसका तो नट-रूप निराला है
तेरे संग रहा कुछ सिखा दिया
अब उसको आगे जाना होगा
तु एक अकेला नहीं यहाँ
किसी और को भी उसे सिखाना होगा
पर तु दिल क्यों छोटा करता है
क्यों पल पल तिल तिल मरता है
जो उसने सिखाया करता चल
और बस रख अपना दिल निर्मल
वो फिर जल्दी ही आएगा
कुछ नया तुझे सिखलाएगा
फिर शायद रुक जाये यहीं सदा
या फिर से जाने वाला है
आखिर उसका का भी दोष नहीं
ये जीवन की रंगशाला है
भगवान की ये पाठशाला है
भगवान की ये रंगशाला है........
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