Sunday, January 30, 2011

गर तु नहीं तो कोई नहीं

गर ज़िन्दगी लिखी है तनहा तो ये तनहा ही सही
हमसफ़र हो तो बस तु हो गर तु नहीं तो कोई नहीं

हर बात हर जगह मेरी तुझसे जुडी है
हर आदत और कलाम में बस तु ही बसी है 

जो तु नहीं तो ज़िन्दगी वैसे भी ज़िन्दगी कहाँ रही
हमसफ़र हो तो बस तु हो गर तु नहीं तो कोई नहीं

कल भी तेरा कसूर था, अब भी तेरा कसूर है
कल तुने यु बिगाड़ा मुझे, क्यों आज मुझसे दूर है
कुछ वक़्त रूकती तो कह देता वो बात जो तुझसे नहीं कही 

हमसफ़र हो तो बस तु हो गर तु नहीं तो कोई नहीं

है जानते ये बात सब की हम आज भी करीब है
पर हम ही नहीं मानते ये बात कुछ अजीब है
मेरी ज़िन्दगी में  सुकून था, जब तक तु मेरे संग रही 

हमसफ़र हो तो बस तु हो गर तु नहीं तो कोई नहीं 

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