Thursday, August 26, 2010

एक कहानी छोटी सी

एक कहानी छोटी सी आज में तुमसे कहता हु

बात शायद उस शहर की है जहाँ में आज भी रहता हु.

बहुत दिन पहले मैंने एक दिन देखा इंसान में अपने भगवान को
आज तक भूल नहीं पाया उसके उस दिन के अहसान को
उसके रूप में धुप नहीं थी उसने चाँद सी शीतलता पाई थी
देखा उसको और लगा की मेरा नाम लिख कर दुनिया में आई थी
हिम्मत नहीं हुई की उसके आगे अपना नाम लेता
शायद नाम जानता तो अपनी कल्पना की उड़ान को कुछ थाम लेता
पर शायद नाम से पहले ही मुझको प्यार हुआ
हाँ है ये बात और की न कभी उसका इज़हार हुआ.

पर क्या ज़रूरी है की प्यार करके बताया जाये
हर बार मन की बातो को दुनिया के सामने जताया जाये
क्या प्यार था मुझे इतना ही काफी नहीं
क्या इस गुनाहे अज़ीम की सच में कोई माफ़ी नहीं.

बहुत दिन बीत गए और शायद मैंने उसको भुला दिया
आरमानो को जगा के रखा प्यार को अपने सुला दिया
फिर मौसम बदला एक दिन और वो आई मेरे सामने
पहचाना नहीं एक पल को उसे पर भगवान लगे हाथ थामने

पूरी रात की कोशिश की उसकी एक औ  झलक दिख जाए
शायद उस रात में ही आने वाली ज़िन्दगी के सपने सजाये
उस दिन फिर से जीने का अरमान जागने लगा
वो मिल जाये मुझे बस यही दुआ मांगे लगा

वो मिली हम लड़े और प्यार भी बहुत किया
शायद पूरी ज़िन्दगी को कुछ ही पलों में जीया

मत हो परेशान की अब अँधेरा है और नहीं कोई प्रकाश है
सोच लो की मिला तुम्ह  कुछ दिन का अवकाश है
आखिर थोड़ी सी ज़मीन पे क्या लड़ना, मेरे पास तो सारा आकाश है
मैं अब खुश हु क्यूंकि आजकल आपके ख्याल में रहता हु
एक कहानी छोटी सी आज में तुमसे कहता हु

एक कहानी छोटी सी आज में तुमसे कहता हु

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