कुछ रिश्ते तो बस सपने होते है
और सब सपने कब अपने होते है
मिल जाते है गर तो हँस देते है
नहीं मिल पाते तो हम रोते है
सपने तो बस सपने होते है
और सब सपने कब अपने होते है
कुछ सपने और रिश्ते तो मिल जाते है आसानी से
कुछ रिश्ते और सपने तो मिल के भी कभी नहीं मिलते
कुछ दिन सावन बादल से नहीं, बस आँखों से बहता है
कुछ दिन ऐसे जब कुछ भी हो, किसी के दिल नहीं पिघलते
कुछ रिश्ते है खट्टे मीठे, कुछ मैं सिर्फ मिठास है
हर रिश्ता हो एक दिन मीठा सबको ऐसी आस है
पर मुझको तो ये खट्टा मीठा रिश्ता ही भाता है
इस रिश्ते मैं कोई हो कैसा सब कुछ घुल मिल जाता है
हर रिश्ते का एक ही सच है, फिर रिश्ते अलग क्यों होते है
आखिर मिलता है आखिर मैं, जो हम शरू मैं बोते है
क्यों ऐसा है की हर रिश्ते मैं हम बस उसकी याद मैं खोते है
सपने तो बस सपने ही है और सपने कब अपने होते है
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