Tuesday, November 9, 2010

अक्सर ये सोचता हु मैं

अक्सर ये सोचता हु मैं भर रात जाग के
क्या तू भी जग रही है मेरे इंतज़ार में

मेरी तो ज़िन्दगी का फलसफा बन गया है याद तेरी
क्या सुकून है आज कल तेरे दिल बेक़रार में

अक्सर  तो बाग़ सूख जाते है पतझड़ की वजह से
मेरा ये प्यार तो ही बेरुखी दिखा रहा है इस बहार में

ना था में इस कदर करीब तुम्हारे की मुझको याद करो
पर कम से कम रहने दो मुझे अपनों की इस कतार में

ना रहा जब वो प्यार तो क्यों आँखें मिलते नहीं मुझसे
मैं जी रहूँगा सदा यु ही अपने प्यार की मजार में

जो जागता हु में तो सो तो तुम भी नहीं पाते
शमा जलती रहती है दोनों तरफ इस अपने प्यार में

है जल रही ये शमा जब तलक, तब तक मुझे यकीन है
ना रोक पायेगा तुम्हे कोई, आओगे तुम जल्दी ही मेरे इख्त्यार में

अक्सर ये सोचता हु मैं भर रात जाग के
क्या तू भी जग रही है मेरे इंतज़ार में

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