क्यों मैंने ये राह चुनी, क्यों मैंने बचपन छोड़ दिया
क्यों ना समझा मैं मोल उसका, क्यों बचपन का खिलौना तोड़ दिया
बचपन के दिन भी क्या दिन थे, ना चिंता थी ना कोई फ़िक्र
ना होती बातें झगडे की, ना किसी से किसी बैर का जिक्र
वो दोस्त भी कितने अच्छे थे, हम सब ही तो बस बच्चे थे
ना कोई भरम ना कोई सहरम दिल सबके कितने सच्चे थे
माँ आती थी, गुहार लगाती थी, मिन्नत करके खाना खिलाती थी
वो थी भोली इतनी की मुझमे या दोस्तों मैं फर्क ना कर पाती थी
वो खेलना घंटो संग सबके, वो छीन लेना अपने हक से
एक दिन वो जब सब अपना था, एक ये दिन जब सबको देखते है शक से
सच वो दिन ही बस अच्छे थे, हम सब ही तो बस बच्चे थे
फिर मैंने क्यों ये रह चुनी, क्यों मैंने बचपन छोड़ दिया
वो सब जो मेरे अपने थे उन सब का दिल क्यों तोड़ दिया....
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