मैंने कब कहा की मुझे ताज़ा फूल चाहिए
मेरे लिए तो मेरे सूखे फूल काफी है
जब मिले ख़ुशी तो तुमको सदा मिले
मेरे लिए तो जीवन के शूल काफी है
कभी लगा नहीं की तुजसे दूर हु में अब
कभी सोचा नहीं तुम से अब मिलूँगा कब
जब आज सोचा तो आँखें ज़रा सी सील गयी
मैंने कब माँगा था समुन्दर, जो नसीब से झील गयी
क्यों कहा नहीं तुम्हे वो सब जो में महसूस करता था
बताया क्यों नहीं कभी की तुम पे कितना मरता था
लगा सदा की तुम ये जानते होगे
मैं तुम्हे खुदा मन, तुम मुझे अपना तो मानते होगे
कभी लगा भी नहीं की तुम्हे बताना ज़रूरी है
कभी लगा नहीं की साथ रहना हमारी मजबूरी है
सोचता रहा की मेरा वक़्त आएगा
वो दिन होगा जब आसमान पे सिन्दूर छाएगा
पर लगा ही नहीं की ये तन्हाई का आगाज़ है
मेरा दिन कभी ना आएगा, मेरा दिन तो सिर्फ आज है
ऐसा नहीं की तुम नहीं थे या कुछ और हो गया
बस तुम आये जब मेरे तो शायद मैं तुममे ही खो गया
ऐसा नहीं दिल टूट गया, मुझे तो आज भी प्यार है
तुम्हे भी मुझ पर यकीन ,मुझे भी तेरा ऐतबार है
पर ये दिल कभी है काबू मैं, कभी बेक़रार होता है
भीड़ में ये हँसता है, तन्हाई में रोता है
तुम्हे मिले वो हर ख़ुशी जो हमने साथ सोची थी
तुम्हारी झोली में सुकून हो, में तो गम भी पी लूँगा
अगर मुझे तस्सली हो, की तुम हो आज भी सुखी
तो मेरा क्या मैं भी बस जी लूँगा
वैसे भी ताज़ा फूल मेरे लिए दुशवार है
तुम्हे मुबारक ताज़ा ये फूल, मुझे मेरे सूखे फूलों से प्यार है
No comments:
Post a Comment