Saturday, October 30, 2010

तनहा रात थी, तनहा पल थे

तनहा रात थी, तनहा पल थे 
दुनिया बड़ी अधूरी थी 
तनहा मैं था, तनहा वो थी 
पर दिलो में ना कोई दुरी थी 

मैं था तनहा और था अकेला 
जीवन में जैसे रंग नहीं 
वो तनहा थी एक मेले में 
भीड़ में भी कोई संग नहीं 

दोनों तनहा है पर फिर भी साथ की आस ज़रूरी है 
जीने को जीवन है सारा, प्रेम की प्यास ज़रूरी है 
एक दिन ऐसे बादल गरजेंगे, ऐसा सावन आएगा 
प्यास बुझेगी भर जीवन की, मन मिलके मुस्काएगा

अब तो बस आकाश है तकना
कब बदली घिर आएगी
कब तक ये तन्हाई की पीड़ा 
हमको यु ही सताएगी 

अब तक तेरी याद ने इस तन्हाई को काटा है 
तेरे होने ना होने की खाई को इसने पाता है 
पर में इन पिछली यादों से यु कब तक जी पाउँगा 
सोचा था की साथ रहेंगे, हर दिन नयी याद बनाऊंगा

पर जब तक तुम आ नहीं जाते 
जीवन में रुसवाई है 
हम तुम दिल से संग सदा है 
पर फिर भी तन्हाई है 

तनहा रात थी, तनहा पल थे 
जीना भी मजबूरी है 
जाने कब तुम लौट आओगे 
तब तक जीना भी ज़रूरी है 

तनहा रात थी, तनहा पल थे 

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