Saturday, October 23, 2010

क्यों मानु में बात ये तेरी...

आज भी तुमने मुझको कहा जब अब तुम मेरे साथ नहीं 
क्यों नहीं माना दिल ने इसको, क्यों दिल को विश्वास नहीं 

आज भी तुमने मुझको ये बातें मेरे मुँह पर नहीं कही 
क्यों मानु मैं सच इन सबको, जब ये सब है सच ही नहीं 

अगर ये सच है तो तुमने से ये दुःख आज तक क्यों सहा 
आँखों में बस झाँक के मेरी क्यों ये सच खुद नहीं कहा 

जब तक तुम खुद सामने आकर खुद से ये ना बोलोगे 
जब तक आँखें करेंगी पीछा, कैसे तुम भी सो लोगे 

अगर ये किस्सा खत्म है करना, तो होगा ये खेल खत्म यही 
एक बार दिखला दो मुझको की अब आँखों में प्यार नहीं 

क्यों मानु में बात ये तेरी 
जब जानु में तू है मेरी 

क्यों मानु में बात ये तेरी....

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