Tuesday, October 12, 2010

कल जिसने कहा था अलविदा

जो जो सोचा सब वही हुआ, ये सच है या कोई सपना है 
कल जिसने कहा था अलविदा, क्या अब तक भी वो अपना है 

जब पूछा खुदा ना क्या दे दू, हमने साथ कहा की प्यार बना रहे 
जब तक रहे तब तक साथ रहे जीवन में ये रस भरा रहे 

जब आज ये रस है, प्यार भी है तो फिर तुमको क्यों जाना है 
क्या सच मैं तुमको फिकर नहीं या मुझसे तुम्हे कुछ छुपाना है

अब तक तो हम साथ रहे पर क्या अब आगे जुदाई है 
क्यों आँखें सुखी है तेरी जब मेरी आँख भर आई है 

क्या सच में वो कोई सपना था जो आज अचानक टूट गया 
ये रिश्ता कभी का खत्म हुआ, ये हाथ भी आज छूट गया 

तुम कहते थे की मुझे भुला दोगे जब भी तुम चाहोगे
क्यों अब भी में विश्वास करू की एक दिन तुम लौट आओगे 

लगता है ये कोई सपना है, अब कोई मुझे उठा भी दो 
तुम पास नहीं पर साथ तो है ये फिर से मुझे बता तो दो 

तुम जानते हो की बिना तुम्हारे मेरा कोई वजूद नहीं 
अगर तुम हो तो में हु वरना में भी मौजूद नहीं 

फिर क्यों तुमने ये खेल किया, क्यों की कोशिश यु जाने की 
नाराज़ अगर जो से मुझसे, कोई नहीं दी मोहलत मनाने की 

क्यों किया ये तुमने जिसे देख में सोचने पर मजबूर हुआ 
क्या जिस्म की दुरी बहुत नहीं जो अब दिल में भी दूरी है 

जब कभी मिलूँगा में तुमसे, क्या सच में  ही मिल पाउँगा 
क्या याद आएगा प्यार तुम्हे, या दुश्मन सा नज़र आऊंगा 

मुझको अब भी विश्वास नहीं, मेरे लिए ये अब भी सपना है 
कल जिसने कहा था अलविदा, क्यों अब तक भी वो अपना है 

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