कल मैंने एक सपना देखा, सपने में हम दोनों ही थे, ना कोई अनजाना था
तुम बोले की चला जाऊ में, सच में तो तुमको जाना था
मैंने पूछा क्या तुम सच में रह पाओगे मेरे बिन
क्यों करते ऐसा कुछ की हो रात अकेली और तनहा दिन
क्यों करते हो ऐसा जिसको करके तुम भी रो दोगे
क्यों लगता है, तुम ये कहोगे और मुझको तुम खो दोगे
पर सोचा की ऐसा क्यों है क्यों तुमने जाने को कहा
क्या कमी रही प्यार में मेरे, क्या प्यार आज प्यार ना रहा
फिर से सोचा, तो याद आया की तुमने ये खुद नहीं कहा
क्यों मानु में अब हम जुदा है या ये प्यार अब नहीं रहा
तुमने तो खुद अपनी जुबा से कोई ताना नहीं बुना
क्यों मानु में ऐसा कुछ भी जो मैंने खुद नहीं सुना
जब तक तुम मेरी आँखों में देख के ये नहीं बोलोगे
तब तक रहेगा रिश्ता यु ही, ये गांठ भी तुम ना खोलोगे
इतने में ये सपना टुटा, देखा तो तुम पास नहीं
फिर याद आया पास नहीं पर साथ तो तुम मेरे ही रही
अपना रिश्ता सबसे अलग है,प्यार भी है तकरार भी है
तुमको मुझपे, मुझे खुदा पे आने का तेरे ऐतबार भी है
कल का सपना सिर्फ सपना था, उसमे सब कुछ ही झूठ है
तुम जाओ या में जाऊ ये रिश्ता अपना अटूट है
ये रिश्ता अपना अटूट है
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