तेरे जाने की खबर आई, पर में रो नहीं रहा
न जाने क्यों ये लगता है की तुझे खो नहीं रहा
तेरा मेरा ये जो ढाई आखर का नाता है
ये ढाई कभी दोस्ती, कभी प्रेम, और कभी प्यार कहलाता है
है ढाई आखर में सारा खेल, इसमें ये दुनिया समाई है
आत्मा में ढाई, हृदय में ढाई, प्रभु में भी तो ढाई है
ये ढाई अक्षर की महिमा में ही दुनिया ये भरमाई है
है इन्द्रिओं में सारी जो महसूस तुझे करती वो सब भी तो ढाई है
दृष्टी, त्वचा, स्पर्श, जिव्या, गंध और कर्ण जिनमे तू समाई है
रिश्ते में एक और एक बस ये ही हमारा योगदान है
बनाया जिसने इसे दो से ढाई वो सिर्फ भगवान है
जब उसने खुद चुना की इस रिश्ते को ढाई होना है
मुझे फ़िक्र क्या जब हमने सिर्फ काटना है क्यूँकी उसने बोना है
मुझे यकीन है उस पर इसलिए में खुश रहूँगा
जा रहे हो तुम आज, में लौटने का इंतजार करूँगा
इसी लिए में तेरे जाने पर रो नहीं रहा
मुझे यकीन है तुम आओगे, मैं तुम्हे खो नहीं रहा....
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