Tuesday, October 26, 2010

झूठी हंसी

मुझसे रही वो दूर जो कुछ दिन
उसने झूठा हँसना सीख लिया
अब सबका बस दिल रखने को मर के जीना सीख लिया

मेरे संग वो जब हँसती थी
खनक वो रूह से आती थी
अब हँसती उनके संग वो
गले से हँसना सीख लिया

हँसते रहना दुनिया के संग
ये दस्तूर अनोखा है
सच में खुद से और दुनिया से आखिर तो ये धोका है

अक्सर खुल के हँसने वाले
छुप छुप के ही रोते है
आँखें सुर्ख होती है रो के
हस के गाल सुर्ख होते है

अगर खुदा है जो इस जहाँ में
तेरी खनक को वापिस लायेगा
एक दिन होगा फिर से उजाला
फिर से गम मुस्काएगा

एक दिन फिर से संग होंगे हम
फिर से हँसी ये गूंजेगी
आज जो गम है दिल में अपने
कल उसको दुनिया दूंदेगी

इतना सा बस तुम कर देना
दिल को अपने दुआ से भर लेना
जल्दी से वो दिन आएगा
हंसी निकलेगी रूह से फिर से
खुदा संग अपने मुस्काएगा

No comments:

Post a Comment